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मेरा बचपन गाँव में गुजरा, दादी की गोद में कहानी सुनते हुए. उस समय की दादी लोगो का खास और एक विशेष गुण ये था कि वो अपने पोतों (पौत्रो) से बड़ा प्यार करती थी. सच मानिये ये प्यार ऐसा था की अगर चोट पोते को लगी तो दर्द दादी को महसूस होता था. मैं अकसर पोतिओं (पौत्रियो) को दया का पात्र समझता था जिन पर दादियो के स्नेह की बारिश न के बराबर होती थी. एक और खास गुण है इन दादियो की कि पोता चाहे जैसा भी दिखता हो शक्लो सूरत से, चाहे जिस भी रंग का हो दादियो को वो राजकुमार ही लगता था.
मैं बचपन में भी काफी गन्दा दीखता था, रंग भी लगभग लगभग काला ही समझिये. आस पड़ोस के बच्चे जब एकत्र होते थे खेलने को तो शायद मै ही उसमे सबसे अजीब सूरत वाला होता था. पतला दुबला इतना कि मनो लग रहा हो जीने के लिए संघर्ष रत होऊ. कभी कभी लोगो के मुहं से अपनी बदसूरती के बखान भी परोक्ष रूप से सुन लेता था. दिल बैठ जाता था, दुःख से हलक में एक अजीब दर्द और चेहरा रुआंसा हो जाता था. अब हम पोतो को इन्ही दादियो का तो सहारा था ऐसे में….. रात को दादी कि कहानी सुन कर ही नींद आती थी. कहानी के बीच में ही कह डाला “दादी मै इतना बदसूरत क्यों हूँ?” मेरी बदसूरती कि चोट मुझे लगी थी पर दर्द अचानक दादी के मुख मंडल पर दिखने लगा. उसी दिन समझ आया हम वो तोते है जिनमे हमारी दादियो कि जान बसती है, दादी ने पहले उन लोगो को जम के लताड़ा जिन्होंने मुझे बदसूरत कहने का दुह्साहस किया था फिर मुझे यकीन दिलाया किसी तरह से कि मै बदसूरत नहीं हूँ. दादी ने उस दिन सचमुच एक पते कि बात बताई कि “सूरत कि जरुरत तो लडकियो को होती है, मर्द का गहना तो शीरत होता है”
मैंने पूछा “दादी मेरी शादी भी हो सकेगी?” क्यूकि मेरा बाल मन बड़ा उत्सुक था शादी को ले कर.
दादी ने कहा “सफल इंसान के पीछे दुनिया भागती है लड़की क्या चीज है?”
बहुत मेहनत की, खूब पढाई की और आज शीरत बचाते हुए एक सफल डॉक्टर भी बन गया हूँ. पर यक़ीनन बदसूरत आज भी वैसा ही हूँ. कालेज के समय भी लड़किओं के बीच कभी भी मेरा जिक्र नहीं हुआ.पर कालेज गाँव में तो था नहीं, मैंने अपनी पढाई दिल्ली से की. अब पढाई में अच्छा था तो कुछ लड़की दोस्त भी थी जो मुझमे कम और मेरे नोट्स में ज्यादा इन्तेरेस्तेद थी. मेरी उन्ही दोस्तों में से किसी एक की शादी की बात चल रही थी. उसके पिता जी ने पूछा “तुम्हे कैसा लड़का चाहिए?”
“टाल, डार्क, हेंडसम” ये उसका जवाब था.
मैं उस रात सो नहीं सका और सोचता रहा दादी के उन उपदेशों में तो शीरत और सफलता ही मुख्य थे जो उस लड़की के जवाब में कही भी नहीं था. मै फिर से एक अनदेखे डर से ग्रसित हो गया और फिर से हीन भावना से ग्रसित हो गया. दादी का देहावसान हो गया नहीं तो पक्का उन्ही से जा कर पूछता उपाय और इसी बहाने थोड़ी प्रशंसा भी सुन ने को मिलती.
फिर ये टाल, डार्क, हेंडसम तो रोज सुन ने को मिलने लगा और अंततः एक निष्कर्ष मैंने खुद भी निकल लिया. ये टाल, डार्क, हेंडसम कुछ भी नहीं है, मेट्रोपोलिटन में रहने वाली लडकिया जिन्हें बेब कहलाना पसंद है उनके दिमाग का फतूर है. जब मैंने लडकियो से पूछा क्या मतलब है इन ३ गुणों को जो आप लोगो को चाहिए? जवाब प्रायः किसी के पास नहीं था और फिर मैंने ये जाना की बस ये लोग ये ३ गुण फ्रेज की तरह उपयोग करती है, जिनका मतलब इन्हें भी नहीं पता. एक ने दूसरे के मुह से सुना दूसरे ने तीसरे और फिर मुर्ख बिरदिरी में ये फ्रेज मशहूर हो गया.
हेंडसम की परिभाषा तो किसी के पास नहीं थी. अगर टाल डार्क हेंड सम ही चाहिए तो भारत की हर लड़की को अफ्रीका के नीग्रो से ही शादी कर लेनी चाहिए क्यूकि वो टाल भी काफी है डार्क तो शुभानाल्लाह और हेंड सम भी होंगे ही अगर कोई परिभाषा ही नहीं है तो.कभी कभी तो लगा की इस फ्रेज में औरत की मानसिकता छिपी हुई है. टाल उन्हें इस लिए चाहिए क्यूकि वो खुद काफी कम होती है लम्बाई में इसमें अगर मर्द टाल नहीं हुआ तो बच्चे तो बोने ही होंगे.
डार्क इसलिए चाहिए की उनकी जो थोड़ी सी खूबसूरती है खास कर गोराई वो कहीं खतरे में न आ जाये.
हेंडसम का क्या फंडा है ये तो उन्हें भी नहीं पता तो हम और आप कहा से जान पाएंगे?
आज दादी होती तो पता चलता उसे की जमाना कितना बदल गया है, जहाँ पहले मर्द में शीरत खोजी जाती थी वहां अब उसकी जगह टाल, डार्क, हेंड सम ने ले लिया है. पर दादी की दूसरी सीख सही थी. उस लड़की ने एक अंत में एक मशहूर डॉक्टर से शादी की जिसके कई अस्पताल है. आज भी इस फ्रेज के इतने चलन में होने के बाबजूद सफलता सबसे ऊपर है.
इसी लिए तो कहते है हर सफल इन्सान के पीछे एक औरत होती है,,,,,,जाहिर है होंगी ही……
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