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भारत में रह कर, भारतीय हो कर, भारत की बुराइयाँ करना भारतियों के लिए आम बात है. ये एक ऐसी कला है जिसमे प्रायः हर भारतीय निपुन है. शायद यह एक तरीका है जिस से हम खुद को अडवांस दिखा पाते है दूसरों के समक्ष. देशभक्ति नाम का कोई शब्द अब शायद है ही नहीं वजूद में या यूं कहे किसी को उसकी जरूरत ही नहीं आज के डिस्को दुनिया में.
भारत की तुलना झटके से लोग अमेरिका या इंग्लैंड जैसी अति विकसित देश से कर देते है और यही नहीं इस माँ के मर्दन का कोई भी उपाय नहीं छोड़ते. जब एक माँ का मर्दन उसी के सपूत करने लगे तो विषय अत्यंत गंभीर हो जाता है. मेरा मानना है की ऐसा विशिष्ट गुण केवल भारतीयों में ही है. इस विषय को आपके समक्ष ठीक से रखने के लिए मुझे यहाँ अपने एक ट्रेन यात्रा का वर्णन करना आवश्यक हो जाता है.
हम और आप जैसे लोग अब राजधानी से ही चलना पसंद करते है. शायद ये हमारा स्टेटस सिम्बोल बन गया है. राजधानी जैसे अति विशिष्ट ट्रेनों में बेथ कर ही हम अति विशिष्ट हो जाते है. इसके मखमली सीटो पर बेथ कर जब हम दुनिया को इसकी खिड़की से देखते है तो सारे बाहर के लोग हमें कीड़ों से लगते है. एक अहंकार का जीवाणु हमारे साँसों के जरिये हमारे शारीर में घुस जाता है और हम इस उन्माद में खूब अकड़ जाते है. ये जीवाणु तुरंत अपना असर दिखाता है और हमें इतना विशिष्ट बना देता है कि हम अपने देश से भी ज्यादा खुद को आंक लेते है.
धीरे धीरे लोग आते जाते है और ये जीवाणु उन्हें भी अपना शिकार बनाये जाता है. फिर शुरू होता है अति विशिष्ट लोगो में कुछ खास विचार विमर्श. मैंने अपने प्रायः हर यात्रा में पाया की इन लोगो के पास सीमित विषय होता है विचार के लिए, जो शुरू तो होता है राजनीति से और तुरंत खुद को भारत की अर्थव्यवस्था, गरीबी, अविकसित कार्यप्रणाली एवं रूढ़िवादी सोच में तब्दील कर लेता है. मेरा ऊपर वाला बर्थ था तो मै वहीँ विश्राम कर रहा था. सहसा एक वार्तालाप ने मेरा ध्यान अपनी और खीचा. आदत से मजबूर हूँ मैं सून ने लगा उसे.
“देखिये कितनी गंदगी है बाहर. राजधानी दिल्ली के बजाये लग रहा हो कोई स्लम हो ”
“अरे भाई साहब भारत है”
ये वार्तालाप तब और ग्लेमरस और दिलचस्प हो गया जब इस में एक २५ साल की लड़की ने शिरकत की. सब लोग वहा आपस में बात कर रहे थे पर बहन जी की बात सुन कर मुझे लगा वो ज्यादा आधुनिक (माड) है या नहीं भी है तो बन ने की कोशिश कर रही है.
“कितनी गरीबी है यहाँ अमेरिका और इंग्लैंड में कहा है ऐसा?”
“गरीबी तो भारत की पहचान है, कुछ भी सिस्टेमेटिक नहीं है यहाँ”
“मैं तो बस तंग आ गया हूँ इस जगह से, जल्द ही अमेरिका शिफ्ट हो रहा हूँ” एक भाई साहब ने कहा.
“क्या देश है ये विकास और तरक्की तो जैसे इसकी दासी हो”
“मैंने भी अभी अभी मनेजमेंट की पढाई पूरी की है सोच रही हूँ अमेरिका या इंग्लैंड ही शिफ्ट हो jau” बहन जी ने कहा.
“वैसे भी क्या रखा है यहाँ मुझे तो सांस लेने में भी यहाँ तकलीफ होती है”
अरे भाई मैं भी भारतीय हूँ वो भी पक्का कब तक सुनता उस बहन जी की फालतू बात. धीरे से नीचे उतरा और बहन जी से पूछ बैठा.
“आपने क्या दुनिया के और देशो का भ्रमण कर लिया है?”
“जी नहीं अभी तक तो मौका नहीं मिला है पर जल्द ही अमेरिका जा रही हूँ” बड़े गर्व से उन्होंने कहा.
“फिर आपको कैसे पता कि सारी गंदगी और गरीबी भारत में ही है?”
“वैसे ये गंदगी खुद नहीं फैलती हम और आप फैलाते है”
बहन जी के पास कोई जबाब नहीं था सो उन्होंने बात बदलनी चाही.
“भाई साहब आप क्यों तंग आ गए है भारत से?”
“अरे यार इतनी नफरत देख के और क्या कहू मैं? है कोई उपाय?” बहन जी ने भी साथ दिया उनका.
“भाई साहब अमन की जरूरत तो अभी हर देश को है भारत के साथ अमेरिका को भी. वहा भी गोरे काले से नफरत करते है और काले गोरों से और वहा आप जा तो रहे है पर कितना सुरक्षित होंगे?”
“बहन जी आप इंग्लैंड क्यों जाना चाहती है?”
“यहाँ पैसा भी तो नहीं है मैं इतने गरीब देश में गरीबो की तरह नहीं रह सकती बस” थोड़े गुस्से में बोली.
“ये कही आपने सच बात, आपको पैसा वहा खीच के ले जा रहा है”
“एक आखरी सवाल पूछुंगा बुरा मत मानिये वैसे आपने अपने देश की जो थोड़ी देर पहले इतना गुण गान किया है उसे उस से मुक्त करने के लिए आपने आज तक क्या सहयोग दिया है?”
सब चुप हो गए.
“आपने पढाई पूरी की भारत में और किसी और देश में जा कर अपना योगदान देना चाहती है कुछ पैसों के लिए फिर तो भारत में ये कमियां रह ही जाएँगी और ऊपर से आप भारत में भारतीय हो कर भारत की बुराई भी करना चाहती है”
“आलोचना कोई विकल्प नहीं है भारत की तरक्की या बदहाली आप और हम से जुडी है”
“और जिन देशो का आप महिमा गा रही है वो कभी गुलाम नहीं रहे है और हमारा गुलामी का विश्व रिकॉर्ड है और ये फिर से गुलाम हो जायेगा अगर इसी तरह से आप लोगो में ये देशभक्ति बनी रही तो”
कुछ देर तक ख़ामोशी रही फिर एक भाई साहब बोल बेठे “वैसे तुम्हारी बाते अच्छी है यार पर भारत का कुछ नहीं हो सकता लिख लो” और फिर सब ने उनकी हाँ में हाँ मिलाना शुरू कर दिया और फिर से वही भारत का मान मर्दन शुरू हो गया.
मेरे मुहं से बस निकला “हद कर दी आपने”
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