Menu
blogid : 605 postid : 26

औरत…. तेरी क्या औकात?

Dual Face
Dual Face
  • 57 Posts
  • 898 Comments

औरत.. इश्वर की ही रचना है. वैसे तो इश्वर की हर रचना नायाब और अद्वितीय है पर इश्वर की यह रचना अतुलनीय है. बचपन में भी मेरा बाल मन इनकी और खिचता था. कुछ गलत मत सोचियेगा, बस लगता था कुछ तो खास है इनमे जो हर तरफ इनका ही जलवा है हर तरफ इन्ही की चर्चा है. शायद हमारी फिल्मो का कुछ ज्यादा प्रभाव था मुझ पर जो औरतो की तरफ मेरा मन ज्यादा खिचवाता था.
जैसे जैसे बड़ा होता गया बहुत कुछ जानने लगा इनके बारे में. जितना जाना मैंने, उतना ही उलझता चला गया. मेरा आने वाला नोवेल भी औरतों की इसी प्रकृति पर लिखा गया है और एक छोटा प्रयास है इन्हें जानने का.
दोस्तों के बीच बैठता था तो शायद ही कोई ऐसा दिन बीता होगा जिसमे ये हमारे चर्चा का विषय नहीं रही होंगी. सही बताऊ कभी कभी लगता था की अगर इश्वरने इनकी रचना नहीं की होती तो तबाही आ जाती. तबाही आती या नहीं आती हम बिलकुल खाली या यू कहे की बिना किसी मकसद के जीते, कम से कम अपना समय इनकी बातें कर के काट तो लेते थे.
एक बार एक दोस्त को एक लड़की दिखाते हुए पूछा “देख कितनी ख़ूबसूरत लड़की है”
दोस्त उसकी तरफ देखते हुए बोला “सच में यार क्या माल है?”
मैंने पहली बार हैरानी में उसकी ओर देखा. कुछ बोला नहीं पर मन थोडा दुखी हो गया उसकी प्रतिक्रिया सुन कर.
मैंने फिर एक और महिला उसे दिखाई जो लगभग ३५ की होगी और इस से पहले कुछ पूछता वो बोल पड़ा “उम्र तो काफी है पर जो भी कहो अभी भी पताका है”. बाकी के दोस्तों ने उसकी राय से सहमती जताई. और सब लगे उस महिला को अजीब सी नज़र से देखने. मेरा मन थोडा नहीं बहुत ज्यादा दुखी हो गया मैं वहां से निकल पड़ा.
सोचने लगा “कैसे ये दुर्गुण मुझमे आ गया और मुझे पता भी नहीं चल पाया”
“कल तक तो मैं भी इनकी बातें करता ही था, अच्छा भी लगता था सदाबहार टॉपिक था हमारा जो हमेशा हमारा मनोरंजन किया करता था, आज मुझे क्या हो गया?”
अपने आस पास की महिलाओं पर चलते चलते मैंने अपनी नज़र दौडाई और महसूस किया की मेरी नज़र शर्म से झुक गयी है. फिर देखता हूँ की एक अधेर उम्र का मर्द मेरी तरफ अपनी मोटरसाइकिल से आ रहा है और उसकी आँखे और उसका सर उसके विपरीत दिशा में जाने वाली हर लड़की की तरफ स्वतः मुड रहा है जैसे की कोई यन्त्र हो जो उसकी नज़र और सर को नियंत्रित कर रहा हो. कहने की जरुरत नहीं वो मुझे ठोकर ही मरने वाला था अगर मैं आज अपने होश में नहीं होता तो.
मेरे मित्र और मैं युवा थे तो औरतो की चर्चा लाज़मी थी पर यहाँ तो उम्र कुछ दिनों में कब्र को रुक्सत होने वली थी. मेरा दिमाग अपनी फिल्मो पर गया जो मुझे बचपन से ही इनकी ओर खिचता आ रहा था. याद आया की बारिश में या झरने में नायिका का अपना तन भीगना लगभग हर फिल्म में आम था. कहने की जरुरत नहीं निर्देशक हमे क्या दिखाना चाहता था और हमारी किस भावना को भड़काना चाहता था? फिल्मो से नैतिक उत्थान तो नहीं हो सका हाँ पतन जरुर हो गया. कौन दोषी है पता नहीं.
अपने कमरे में आया और मन बहलाने के लिए एक समाचारपत्र का साईट खोला. उस वेब पेज पर एक दो समाचार के बाद एक शीर्षक ने मेरा ध्यान अपनी और खीचा. शीर्षक था रफ़्तार ए जवानी..शीर्षक के ठीक नीचे एक खुबसूरत लड़की अर्धनग्न अवस्था में मादक अदा लूटा रही थी. थोडा पढ़ा तो पता चला की वो कोंडोम और सेक्स से जुडी कोई कहानी है. फिर जिज्ञासा बश मैंने बहुत सारे समाचारपत्रों का साईट खोला और पाया प्रायः सब में ऐसा कोई न कोई शीर्षक जरूर था औरत की भड़काऊ तस्वीर के साथ शायद प्रतिअस्पर्धा का दौड़ है इसलिए ये जरूरी हो गया है. सोचने लगा समाचारपत्र ही क्यों हर जगह महिलाओं को उपयोग किया जाता है.
आज वक़्त इतना गन्दा आ गया है की हर दूसरा इंसान गन्दा बन गया है किसी न किसी लालच में. जब कोई मर्द महिलाओं के बारे में सोचता है तो वो ये क्यों भूल जाता है की उसके घर में भी महिला है और दुसरे भी उनको उसी नज़र से देख सकते है. वो क्यों भूल जाता है कि औरत का एक रूप सिर्फ वो औरत नहीं जिसे वो गन्दी नज़र से देख रहा है बल्कि माँ, बहन और पत्नी भी है जिनके बगैर मर्द एक कदम नहीं चल सकता.
लोगो को याद है की महात्मा गाँधी ने देश के लिए बड़ी क़ुरबानी दी पर ये भूल जाते है मोहन दास करमचंद गाँधी को महात्मा कस्तूरबा ने बनाया लोग भूल जाते है गाँधी से ज्यादा बलिदान और त्याग कस्तूरबा ने किया जो न सिर्फ उनके घर को उनके अनुपस्थिति में संभाली वरन उनका हर नाजुक वक़्त पर साथ भी दी.
ऐसे लोगो को क्यों याद नहीं रहता कि किसी से भी बढ़ कर औरतो ने समाज कल्याण का काम किया है उदहारण के तौर पर आप मदर टेरेसा को ही ले लीजिये. उदहारण और मिल जायेंगे अगर पुरूष अपने अहम् से बहार निकल कर देखेगा तो.
कुछ लोगो ने यहाँ तक कहा कि अरे भाई महापुरूष होते है पर महानारी सुना है? “औरतों की क्या औकात यार कि कोई बड़ा काम ये कर पाए”.मजाक में जीने वाले इंसान हर चीज का मजाक ही बनाते है पर अज्ञानी को ये पता नहीं होता सच मरता नहीं कभी ज्ञान के प्रकाश को कोई अँधेरा नहीं निगल सकता. जितने महापुरूष का नाम आप जानते है वो महापुरूष नहीं होते अगर इनसे जुडी महिलाओ ने इनसे बढ़ कर अपने स्वार्थो का त्याग नहीं किया होता तो. आखिर महापुरूष भी किसी महिला के कोख से ही पैदा होते है आम आदमी की तरह. हमे नहीं भूलना चाहिए नारी जननी है. आज भारतीय समाज जीवित है तो इसमें मर्दों से कई गुना ज्यादा श्रेय इन महिलाओं को जाता है जो हर जगह छोटे या बड़े स्वार्थो की पूर्ती के लिए उपयोग की जाती है. यही नहीं सारे अत्याचार इन्ही पर होते है और फिर भी इनकी सहनशीलता तो देखिये आज भी मुह बंद किये और नज़रे झुकाए जी रही है और राष्ट्र निर्माण का महान कार्य कर रही है. हे महिलाओं मैं अपनी हर भूल की माफ़ी तुमसे मांगता हूँ और तुम्हारे इन त्याग और निस्वार्थ जीवन को शत शत नमन करता हूँ. मैं तुमसे तुम्हारी औकात नहीं पूछूँगा क्युकी मैं जान गया हूँ तुम क्या हो? शांत रही तो तुम्ही लक्ष्मी तुम्ही रिधि सीधी हो और अशांत हुई तो तुम ही काली दुर्गा हो……

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh