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मुस्लिम या किसान? असली भारत

Dual Face
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भारत का परिचय देना सूर्य को दिया दिखाने के बराबर है और मैं ऐसा कर के छोटी मुह बड़ी बात का उदहारण देना नहीं चाहता. पर मैंने हमेशा से भारत की समस्याओं पर आप लोगो का ध्यान खीचा है और कुछ हद तक सफल भी हुआ हूँ. आलेख मैंने लिखे है पर आपने अपने कीमती प्रतिक्रिया दे कर उसे सफल बनाया है.
बात करते हैं आज के आलेख की. भारत की संपती पर किसका हक सबसे ज्यादा है? घबराइए मत… ये सवाल मैंने यूं ही नहीं पूछा है. मुख्यमंत्रियों की सभा में माननिये प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने कहा की भारत की सम्पति पर पहला हक मुसलमानों का है? जब गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उनसे पूछा की कैसे भारत की सम्पति पर पहला हक मुसलमानों का है तो वो कोई जबाब नहीं दे पाए. मिडिया ने भी इस मुद्दे पर काफी फजीहत की थी प्रधानमंत्री की.
कांग्रेस की सरकार ने तो धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा ही बदल दी है. मैंने देखा है और महसूस किया है की हर चुनाव में ये लोग एक नयी परिभाषा के साथ चुनावी संग्राम में उतरते है.
मैं आप लोगो को आज की परिभाषा बताता हूँ जो निश्चित रूप से आप भी जानते होंगे. आज की परिभाषा है हिन्दुओं को आहात करो हर तरह से और मुस्लिमो के पक्ष में बोलो. अगर ऐसा नहीं होता तो प्रधानमंत्री कभी भी ये नहीं कहते की भारत की सम्पति पर मुस्लिमो का हक सबसे ज्यादा और पहले है. उन्हें काश थोड़ी याद उन किसानो की आ जाती जो दिन रात खेतो पर मेहनत कर इस देश के बहुसंख्य गरीबो को दो वक़्त की रोटी देते है. वो बिना भेदभाव के सबके लिए अन्न उगाते है और इन महाशय की तरह परिभाषा नहीं बदलते.
आप सब अपने अपने हाथो को अपने दिल पर रख कर पूछिए खुद से की क्या सचमुच सबसे पहले और ज्यादा भारत की सम्पति पर मुसलमानों का हक है या उन मासूम गरीब किसानो का?. किसानो का योगदान किसी भी मुस्लमान से ज्यादा प्रभावशाली है. ये गरीब अन्न उपजा कर भारत की सबसे बड़ी समस्या इसकी जनसँख्या को खिलाते है और बदले में भारत की जनसँख्या भी नहीं बढ़ाते. फिर भी किसी को इनका कोई योगदान किसी को नहीं दिखता.
आज प्रायः हर राज्य में किसान भूखमरी से मर रहे है. ये बिंडबना ही है न भारत की कि जो इसकी जनसँख्या को खिलाता है खुद भूखमरी से मर रहा है और खुदखुशी करने पर मजबूर है. इनकी हालत पर तो प्रधानमंत्री को कोई तरस नहीं आता पर हाँ इनका हक मार कर सिर्फ चंद वोट के लिए भारत की सम्पत्ति पर मुस्लिमो का हक बताना जरूर आता है. कौन है ये ऐसी घोषणा करने वाले?
पाकिस्तान के बच्चो का इलाज कराना इन्हें आता है पर यहाँ कितने बच्चे रोज भूख से मरते है इसका ख्याल तक नहीं आता है. हमने तो आज तक यही पढ़ा था की भारत कृषिप्रधान देश है और इसके देवता किसान है. पर कुछ लोग भूल गए अपने अपने मतलबो को साधने के लिए. मुस्लिमो का क्या कसूर है? वो तो जानते ही नहीं कि उनका सिर्फ उपयोग हो रहा है जिसको मैं दुरपयोग कहना ज्यादा बेहतर समझता हूँ. शिक्षा सुधरेगी तो शायद इनके विचारों में भी तबदीली आएगी पर सरकार और मौलबी दोनों ऐसा नहीं चाहते.
किसानो की तो तुलना ही नहीं की जा सकती और करनी भी नहीं चाहिए मुसलमानों से. ये वर्ग तो पूज्य है. ज़मीन से जुड़ा इमानदार वर्ग, निर्दोष वर्ग एक तरह से भारत, पर राजनीती जो भी मान मर्दन न करे इनका. आज आप ये सवाल मात्र उठा दे की भारत की संपत्ति पर मुस्लिमो का हक पहले और ज्यादा क्यों? तो आप सांप्रदायिक हो जायेंगे. आज भी भारत वही है जहा किसानो की हालात अत्यंत ख़राब थी. आज भी ये बन्दुआ ही है और कई राज्यों में खानावादोश. कितनी बार मन रोया इनकी हालत पर, कितनी बार चाहा की प्रधानमंत्री की उन घटिया और बेतुके बात को भूल जाऊ पर आज खुद को सांप्रदायिक कहे जाने का भय त्याग कर आखिर लिखने बैठ ही गया. आप हमेशा से फैसला लेते आये है आज भी आप ही लेंगे. मैंने तो बस अपना रोना रोया है जो सिर्फ मेरा ही नहीं भारत का है. भारत के इस पूजनिये वर्ग को इनका पूरा हक मिले ऐसी मेरी कामना है. जय जवान जय किसान जय हिंद.

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