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जागरण पर गधे…पर क्यूं?

Dual Face
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निसंदेह भारत एक गरीब राष्ट्र है. गरीबी का अनुमान आप सिर्फ धन संपत्ति से ही लगा सकते है. भारत के २०% लोगो के पास जो संपत्ति है भारत की वास्तविक संपत्ति का अनुमान उन्ही लोगो की संपत्ति से लगाया जाता है. यही नहीं विकास दर भी इन्ही लोगो के विकास से लगाया जाता है. आम आदमी की तो भाई साहब खटिया खड़ी है.
लेकिन भारत में संपत्ति की कमी के अलावा कुछ और चीज भी है जिस पर आप लोगो का ध्यान खीचना चाहूँगा. आज मानवता, इमानदारी, भाईचारा, प्रेम हर चीज का आभाव हर जगह आपको दिख जायेगा. हम अपने अपने क्षेत्रो में काम करते है दिन रात और चाहते है की हर सुख सुविधा हमे मिले. इसके लिए हम बुरी आदतों को भी अपनी जिन्दगी का एक हिस्सा बना लेते है और फिर उपयुक्त लिखे खास नैसर्गिक गुणों की हत्या खुद ब खुद हो जाती है. माने न माने ,हम नियमित हत्यारे है.
एक घटना का उल्लेख करना चाहता हूँ जिस से आहात हो कर आज मैं ये आलेख लिख रहा हूँ. मैं कोई नयी चीज आपको बताने नहीं जा रहा हू कही न कही आप सब इस चीज को देखते होंगे और शायद दुखी भी होंगे.
आज मैं बात करने जा रहा हूँ गधो की. हसिये मत और न ही चौकिये. अगर आप और हम सच का सामना कर सकने में समर्थ है तो आपको मानना होगा की हमसे भले ये गधे है. हम इंसान हो कर भी इन गधो से बेकार है. एक एन जी ओ के कार्यक्रम में शिरकत लेने मैं मुनिरका जो की दक्षिण दिल्ली में अवस्थित है गया. मुनिरका अतितंग जगह है. वास्तविकता में ये जगह उन रिफुजियो को दिया गया था जो पाकिस्तान और फिर बंगलादेश से विदास्थापित हुए थे. इन लोगो ने मन माने ढंग से इस जगह में सरकार के दिए हुए ज़मीनों पर कानून को ताक पर रखते हुए घर बना लिया और आज हालत इतने बुरे है की इन गलियों से एक मोटरसाईकिल भी मुश्किल से गुजर पाती है.
इस जगह हर दिन कुछ नए घर बन रहे है मेरे आलेख के नायक गधो की मदद से.
आप कहेंगे गधो की मदद से घर कैसे बन सकता है. बन सकता है और बनता है. गधे बेचारे यहाँ सुबह से शाम तक ईट, बालू , गिट्टी एक जगह से निर्माण स्थली तक ढोते रहते है. मौसम कैसा भी हो निर्माण कार्य यहाँ चलता ही रहता है क्युकी हर इंसान को पैसा कमाना है.
पैसे कमाने का जो साधन है यहाँ वो ये कि हर आदमी यहाँ अपना मकान भाड़े पर लगाता है. इनको भाड़ेदार मिल भी जाते है क्युकी ये इलाका विद्यार्थियों का है. मनमाना भाडा होता है थोडा कमाने के बाद और कमाने की तृष्णा होती है और फिर कुछ और तल जोड़ दिए जाते है उस मकान में. कहने का मतलब ये की काम चलता रहता है और गधो को भी काम हर मौसम में बिना रुके करना पड़ता है.
आप कहेंगे की भाई गधो का काम अब होता ही क्या है? बिलकुल गधो का काम यही होता है पर हम और आप बिलकुल भूल गए है की गधों में भी जान होती है और उन्हें भी पूरा खाना और आराम की आवश्यकता होती है. जब मैंने इन गधो पे होते ज़ुल्म को देखा तो मन में दृढ निश्चय ले लिया की आज सारा सच जान कर ही रहूँगा.
शाम को एक गधे वाले को पकड़ा और पूछा ” भाई इन गधो को सुबह से काम करा रहे हो, थके लग रहे है”
“बाबू जी काम ही इतना है की क्या करे, दो जगह का ठेका ले रखा है सामान पहुचने का” उसने कहा
“खाना वाना दिया की नहीं इनको?” मैंने फिर पूछा.
“गधे है साहब, हर दिन का काम है इनका ये, इनको आदत हो गयी है” मेरे सवाल को टालता हुआ बोला.
“इतनी गर्मी है यार पानी तो पिला ही दो?”
“अरे साहब अब तो कुछ भी रात को ही हो पायेगा” और वो चला गया.
मैं वही कुछ देर बैठा रहा और कुछ और आते जाते गधो को देखता रहा. अब गधों के कदम उखाड़ने लगे थे. कुछ तो अपने खास अंदाज़ में आवाज़ भी निकाल रहे थे जैसे की रो रहे हो. फिर देखा की एक जुलाहा ने गधे को बड़े जोर से तीन चार डंडा खीच दिया और वो गधा सड़क पर गिर गया और इस से क्रोधित हो कर जुलाहा उसे और मारने लगा. मैं खुद को ना रोक सका और पकड़ लिया उस गधे को जो इंसान का रूप लिए था. कुछ लोग आ गए और एक गधे वाले ने मुझे अपने घर आने का निमंत्रण दिया. मैंने कुछ गधे को बंधा पाया जो खा रहे थे. मैं उत्सुकता वश उन्हें देखने उनके पास गया. उनके पास जो रुखी सुखी पड़ी थी वो इतना ही था की वो ऊँट के मुहं में जीरा कहने के भी लायक नहीं था. मेरी आँखों से अश्रु निकल पड़े.
“साहब इस से ज्यादा मैं नहीं खिला सकता इन्हें, और लोग तो खिलाते भी नहीं कभी कभी” वो बोला.
आप समझिये इन गधो का दर्द. मैंने लगभग ६ महीने पहले पढ़ा था की इंडोनेसिया में गधे आत्महत्या कर रहे है. शोध में कारन का जो पता चला था वो ये कि इनको पूरा खाना तक नहीं मिल पा रहा है. वहा के गधे नदियों में कूद कर अपनी जिन्दगी खत्म कर रहे है. मैं बाहर निकल गया उस जुलाहा के घर से और रस्ते पर आ कर देखा की जिस गधे को अभी अभी मैं उस चंडाल जुलाहा से बचा रहा था उसने अपना दम तोड़ दिया.
इंसानियत का ऐसा नंगा नाच और गधो पर इस ज़ुल्म को देख मुझे खुद को इंसान कहने से भी शर्म आ रही है.
“जागरण पर गधे. . पर क्यूं?” इस शीर्षक का रहस्य आप शायद समझ गए होंगे. क्युकी आज यही मंच है जिसकी मदद से इन गधो का दर्द मैं सबको बता सकता हूँ और कुछ संवेदंशुन्य हृदय में कुछ परिवर्तन ला सकता हूँ.

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