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आज बाबा रामदेव जैसा सेलेब्रेटी कोई नहीं है. जी हाँ मैं उन्हें सेलेब इसलिए कह रहा हु क्युकी आजकल वो योग के लिए कम, और चीजों के लिए ज्यादा छाये रहते है मिडिया में. ठीक ही है योग का जितना भला करना था बाबा ने कर ही दिया, योग के माध्यम से जो लोकप्रियता मिली और जो मिडिया का क़वेरेज मिला उसका बाबा आदि हो गए.
हाल में आये कोमनवेल्थ गेम का पर्दा फाश करना हो या विदेशो में जमा धन या भ्रष्टाचार बाबा का बयान हर मुद्दे पर आया. वैसे तो बाबा का मैं बड़ा फेन हू बाबा के बयानों को बड़े गंभीरता से सुनता हु और देखने का मौका मिले तो गवाना तो जैसे मुझे आता ही नहीं.
कल यू ही नेट सर्फ़ कर रहा था तो बाबा दिख गए जनता की अदालत में. मैंने पूरा भाग देखा और फिर कुछ और विडिओ भी मिले जिन्हें देखा.
बाबा ने कहा सरकार को कोंडोम को लोकप्रिय नहीं बनाना चाहिए. कोंडोम पर बेन लगे क्युकी ये समाज की जो रूपरेखा है उसे बर्बाद कर रहा है.
मुझे जरा ये सुझाव अटपटा सा लगा. बाबा क्यों कोंडोम के प्रचलन के खिलाफ है. बाबा खुद भी जानते है आज समाज जहाँ है, जिस हालत में है, कोंडोम उसकी एक जरुरत है. बाबा कहते है लिव इन गलत है और उस पर रोक लगे. मेरा मानना भी ऐसा ही है कि लिवइन गलत है पर आप रोक लगाने की मांग क्यों कर रहे है? आज महिलाये घर से बाहर आ चुकी है, वो कामकाजी हो चुकी है. शिक्षा के लिए भी लड़कियों को बाहर निकलना पड़ता है. महानगरो का क्या हाल है आप लोग जानते ही है, एक अकेली लड़की हर वक़्त भेड़िये निगाहों का शिकार होती है. लिवइन से उन्हें एक सुरक्षा मिलती है और ज्यादा लिवइन प्रेमी युगल के बीच में ही होता है. अगर प्रेम पाक साफ़ है तो क्या हर्ज़ है की दोनों साथ रहे और पढाई ख़त्म कर के शादी के पवित्र बंधन में बांध जाये. आज के हालत बदल गए है, आज की समस्याए अलग है आज का वातावरण अलग है इसलिए लिव इन को अगर मैं जायज नहीं तो नाजायज भी नहीं मानता. आप खुल कर सोचेंगे तो आपको लगेगा की समस्या ये नहीं है समस्या हमारी सोच में है मैं दावे के साथ कह सकता हू आप में कई होंगे जो गंभीरता से अगर सोचे तो उन्हें भी आज के परिदृश्य में ये गलत नहीं लगेगा. और आप में से कई लोग लिव इन में होंगे भी. कुछ चीजों को हम गलत इसलिए भी कहते है क्युकी ये हमारे दिमाग में डाला जाता है, किसी और के द्वारा या हम बचपन से वो पढ़ते आ रहे होते है. पर इंसान वो है जो बदले हालत में अपना दर्शन दिखा सके. उसे पर्वत के सामान एक चीज़ को ले कर कोई एक खास राय नहीं बना लेना चाहिए. अगर आप लडकियों के शिक्षा के पक्ष में है और उनकी मजबूरियों से अवगत है तो आप समझ सकेंगे. हम कहते है लड़की के साथ ये हो गया, वो हो गया पर सामाधान कौन करेगा? लड़कियां अगर कुछ सोचती है तो आप सीधे उसके चरित्र पर सवालिया निशान लगा देते है.
अगर आप मानते है की लिव इन है आज काफी प्रचलित तो आप ये भी मानेंगे कि अगर आप पेट्रोल और चिंगारी को साथ रखेंगे तो आग लगेगी ही. ये बड़ा सीधा सा रसायन शास्त्र है. अनेक्षिक संतान का डर हमेशा रहता है. ये शादीशुदा लोगो पर भी लागू होता है. कई दम्पति जल्दी बच्चा नहीं चाहते है क्युकी जिन्दगी में कई और समस्या है जिनका समाधान पहले होना जरुरी होता है. अगर अनेक्षिक संतान को टालना है तो क्या सरकार कोंडोम को लोकप्रिय नहीं बनाएगी. अगर नहीं बनाएगी तो जनसँख्या की मार हम सब झेलेंगे और फिर हमेशा की तरह बोलेंगे की कितनी जनसँख्या है? या फिर अखबार में जैसा की हम सब पढ़ते है की आज एक नवजात नाली में मारा पाया गया, इस तरह की खबर ज्यादा पढने को मिलेगी. आप तैयार है?
कोंडोम से सेक्सुअली ट्रांस्मितेद बीमारी से भी रक्षा होती है. आज एड्स और सिफिलिस जैसी कई दुर्दांत बीमारी ने कई राष्ट को जकड रखा है तो क्या कोंडोम एक जरुरत नहीं है? जनता के स्वास्थ की जिम्मेदारी किसी सरकार की ही होती है. सरकार समाज में व्याप्त तथाकथित कुरीति को दूर नहीं कर सकती ये उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं होता है पर कोंडोम को लोकप्रिय बना कर कम से कम उन्हें जागरूक बना सकती है.
बाबा कहते है सेक्स सिर्फ बच्चे पैदा करने की विधि है और उसी के लिए करना चाहिए जो ज्यादा करता है वो हवशी है. मनुष्य का निर्माण और जीवो से काफी अलग है उनके होरमोन अलग होते है और जरूरते भी अलग होती है. बाबा कहते है पशु भी तो सिर्फ बच्चा पैदा करने के लिए ही सेक्स करते है पर ये कहते हुए बाबा भूल गए की जानवरों में एक हिट पिरिओद होता है जो किसी जानवर में वर्ष में एक बार या किसी में दो बार आता है पर मनुष्य ही ऐसा जीव है जिसके हिट पेरिओद के बारे में ज्यादा नहीं मालूम है क्युकी ऐसा कहा जता है की ये १२ महीने होता है और २४ घंटे भी हो सकता है, होरमोन के लेवल के अनुसार. तो क्या इस तरह भी कोंडोम एक जरुरत नहीं है. बाबा न तो पूरा प्रेक्टिकल है न पूरा आध्यात्मिक. क्युकी प्रेक्टिकल होते तो मानते की मनुष्य की अपनी कई समस्याए है और उनसे राहत उन्हें सेक्स देता है जो वो अपनी जोड़े से करता है क्या गलत है? अगर आध्यात्मिक होते तो नहीं भूलते प्रेम संसार का सूत्रधार है और प्रेम की कोई सीमा नहीं होती और वो अंत में सम्भोग पर ही खुद को फ़ना करता है.
नोट : मेरा मकसद किसी को चोट पहुचाना नहीं है मेरा मकसद समाज को जागरूक करना है. समस्या नहीं सामाधान दीजिये.
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