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हम इंसान कुछ अजीब से होते है. सच मानिये तो कभी कभी इंसान कहना भी एक मजाक लगता है. आदमी और इंसान में तो ज़मीं आसमान का फर्क है. इंसान में इंसानियत होती है जो कुछ गुणों का एक संग्रह है. इश्वर ने तो इन्सान बनाने का सोचा था पर वक़्त की चाल में अब हम आदमी हो गए है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता है और क्षणिक सुख पाने के लिए राक्षस भी बन सकता है.
कुछ दिन पहले एक भूली बिछड़ी कहानी फिर याद आ गयी. इस कहानी से मैं इतना शोकसंतिप्त हुआ बरसो पहले की इसे भूल जाना ही बेहतर समझा. इश्वर का शुक्रिया हम आदमियों, मनुष्यों को जरुर अदा करना चाहिए की चाहे कितनी भी पीड़ा दुःख हमे मार जाये अन्दर तक भगवन ने हमे एक दिल दिया है जो संतोष कर लेता है और उसे भूलने में हमारी मदद भी करता है.
ये कहानी है एक मासूम, प्यारी और नन्ही सी आरुशी की. याद तो होगी ही. कैसे भूल सकते है? हमारा दिल कितना भी बड़ा क्यों न हो कितना भी संतोषी क्यों न हो ये कहानी तो नहीं भूल सकता. बरसो पहले आरुशी की हत्या उसी के घर में कर दी गयी थी और लाश मिली थी टेरेस से. पुलिस आई अपना फ़र्ज़ निभाई और भारतीय पुलिस की महिमा निभाते हुए असफल भी हो गयी कातिल का पता लगा पाने में. फिर सी आई डी और अंततः हमारे देश की शान सी बी आई को जिम्मा सौपा गया. सी बी आई तो ठहरी बड़ी संस्था नाम है, रुतबा है लगी रही सिनाख्त में. पर साल पे साल गुजर गए आरोप प्रत्यारोप लगते रहे, सारे आधुनिक टेस्ट होते रहे पर कातिल नहीं पकड़ पाए. कुछ्ह दिन पहले पेपर में पढ़ा की आरुशी की फ़ाइल सी बी आई ने बंद कर दी. उपसंहार में यही था की कातिल को खोज नहीं पायी सी बी आई.
ऐसा पहले भी हो चूका है कितने खून हुए और हमारी अतिविशिष्ट संस्थाए कातिल के समीप भी नहीं पहुच पायी. एक उदहारण जेसिका लाल का भी है.
आज आरुशी को मै अपने शब्दों से श्रधांजलि देते हुए, प्रणाम करते हुए क्षमा मांगता हु हर उस आदमी की तरफ से जिन्होंने उस नन्ही सी जान की आत्मा को घायल किया है. कितने शक भड़े, वहशी नज़रों से आज तुम बच पाती आरुशी अगर जिंदा होती तो अच्छा हुआ तुम मर गयी. यहाँ नारी होना ही गुनाह है और वो नारी होना तो पाप है जिस पर तुम जैसे जिस्मानी सम्बन्ध होने का इलज़ाम हो. कितने है जो तुम्हारी हकीकत जानते है मै तो कहता हु कोई नहीं जो हकीकत जनता हो तुम्हारी नहीं तो आज तुम्हारा कातिल यु घूम नहीं रहा होता. जितने वसंत देखे नहीं तुमने उस से ज्यादा घिनोने इलज़ाम और घाव तुम्हे इस दुनिया ने दिए. तुम्हारी चर्चा होती है हर चौक चौराहे पर चाय की चुस्कियो के साथ हर तबके का आदमी तुम्हारी जिक्र करता है पर सब तुम्हारी कहानी से मजा लेते है. कोई कहता है तुम्हारा सम्बन्ध तुम्हारे नौकर के साथ था, कोई कहता है की तुम जैसे माल के लिए वो तुम्हारा नौकर भी बनने को तैयार थे कुछ मिलता तो. आज तुम्हारे नौकर भी मिडिया की सुर्खियों में है. कोई तुम्हारे माँ बाप पर शक करते है कोई उन पर दुसरो के साथ विवाहेतर सम्बन्ध बनाने का भी शक करता है. मिडिया ने भी तुम्हे जलील करने का कोई मौका नहीं गवाया. सुना है तुम पर अब पूजा भट्ट फिल्म भी बना रही है.
देख लिया आरुशी जिंदा थी तो किसी के काम न आ पाई और मरने के बाद तुम कितनो के काम आ गयी. मुझे पता नही किसने तुम्हे मारा पर तुम आप तो नहीं मरी इतनी दर्दनाक मौत. अगर कोई गलती भी तुमने की थी तो भी तुम मौत तो नहीं डिजर्व करती थी. आज एक इंसान यहाँ चाहे कही भी ऐसा हो जो ये कह सके उसने कोई गलती नहीं की कोई पाप नहीं किया. तुम हमारे उन संतो, सन्यासियों और साधुओ या धर्म गुरुओं से कही पवित्र थी जो हर कुकर्म करते है और शान से उस पदवी पर विराजवान रहते है और लोगो की श्रद्धा पाते है.
ये सारा संसार काम तृष्णा में यु बह रही है की किसी को कुछ और नहीं सूझता. मैं पूछता हु की खुलासा कैसे हुआ की तुम्हारा अवैध सम्बन्ध तुम्हारे नौकर या दुसरे लोगो के साथ था. क्या तुम कुछ देर के लिए जीवित हो कर ये गुनाह कबूली अगर ऐसा है बहना तो एक बार फिर उठ और उस दरिन्दे का नाम भी बता जा जिसने तुम्हे यु मौत के घाट उतार दिया. खुनी का खुलासा नहीं हुआ वो सलाखों के पीछे नहीं गया पर तुम्हारे और तुम्हारे परिवार का हर राज़ सार्वजनिक हो गया. आदमी से अब नफरत हो गयी है मुझे, कोई कह रहा था काश की तुम्हारा मृत शारीर ही मिल जाता कुछ देर खेलने के लिए.
आरुशी ये है इस दुनिया की सच्चाई जहा मै जीता हु, तुम कुछ मत सुनना क्युकी यहाँ किसी की आत्मा जीवित नहीं है और तुम तो एक पवित्र आत्मा हो मेरी नज़र में इसलिए तुम्हे इन कीड़े मकौड़ो की बात नहीं सुननी चाहिए और मैं उम्मीद करता हु की वहा उस जहाँ में तुम जरुर पूजी जाती होगी और सब के पलकों पे होगी.
*यहाँ पर्दा नहीं उठा पर इन्साफ किसी संस्था का मोहताज नहीं होता, खुदा का पर्दा उस जहाँ में जरुर उठेगा*
*मेरी तरफ से आरुशी को अश्रुपूर्ण श्रधांजलि और भगवान् से प्राथना की उस मासूम की आत्मा को शांति दे*
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